‘‘हिरीनिसेधो पुरिसो, कोचि लोकस्मिं विज्जति।
यो निन्दं अपबोधति [अपबोधेति (स्या॰ कं॰ क॰)], अस्सो भद्रो कसामिवा’’ति॥
इस लोक में ऐसा कौन आदमी है जो अपने अन्तःकरण द्वारा रोका जाता है ,
जैसे एक अच्छा अश्व चाबुक से सचेत किया जाता है?
Who in the world is a man constrained by conscience,
who awakens to censure like a fine stallion to the whip?
‘‘हिरीनिसेधा तनुया, ये चरन्ति सदा सता।
अन्तं दुक्खस्स पप्पुय्य, चरन्ति विसमे सम’’न्ति॥
जो अपने अन्तःकरण से रोके जाते हैं , वे हमेशा जाग्रत होकर जीवन जीते हैं ।
वे दुखों का अंत कर विषम स्थितियों में भी शांति और सुख के साथ जीते हैं।
Those restrained by conscience are rare — those who go through life always mindful।
Having reached the end of suffering & stress, they go through what is uneven evenly;
go through what is out-of-tune in tune।
"Hiri Sutta: Conscience" (SN 1.18), translated from the Pali by Thanissaro Bhikkhu. Access to Insight, June 14, 2010, http://www.accesstoinsight.org/tipitaka/sn/sn01/sn01.018.than.html।
हिन्दी अनुवाद : राजीव
यो निन्दं अपबोधति [अपबोधेति (स्या॰ कं॰ क॰)], अस्सो भद्रो कसामिवा’’ति॥
इस लोक में ऐसा कौन आदमी है जो अपने अन्तःकरण द्वारा रोका जाता है ,
जैसे एक अच्छा अश्व चाबुक से सचेत किया जाता है?
Who in the world is a man constrained by conscience,
who awakens to censure like a fine stallion to the whip?
‘‘हिरीनिसेधा तनुया, ये चरन्ति सदा सता।
अन्तं दुक्खस्स पप्पुय्य, चरन्ति विसमे सम’’न्ति॥
जो अपने अन्तःकरण से रोके जाते हैं , वे हमेशा जाग्रत होकर जीवन जीते हैं ।
वे दुखों का अंत कर विषम स्थितियों में भी शांति और सुख के साथ जीते हैं।
Those restrained by conscience are rare — those who go through life always mindful।
Having reached the end of suffering & stress, they go through what is uneven evenly;
go through what is out-of-tune in tune।
"Hiri Sutta: Conscience" (SN 1.18), translated from the Pali by Thanissaro Bhikkhu. Access to Insight, June 14, 2010, http://www.accesstoinsight.org/tipitaka/sn/sn01/sn01.018.than.html।
हिन्दी अनुवाद : राजीव
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